मेक इन इंडिया पर निबंध Make In India Par Nibandh – UPSC

मेक इन इंडिया पर निबंध Make In India Par Nibandh मेक इन इंडिया पर निबंध हिंदी में PDF.

मेक इन इंडिया पर निबंध Make In India Par Nibandh - UPSC

मेक इन इंडिया पर निबंध

‘मेक इन इंडिया’ भारत सरकार द्वारा देशी और विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में ही उत्पादित वस्तुओं पर बल देने के लिए प्रारंभ के विकास की गति को तेज करने तथा देश को ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को की थी । स्थानीय उद्योगपतियों ने इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भागीदारी की । इसी अवसर पर ‘मेक इन इंडिया’ का प्रतीक चिह्न (Logo) भी जारी किया गया जिसमें कलपुर्जों से बने एक सिंह को दर्शाया गया है। सिंह न केवल देश के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न अशोक चक्र का हिस्सा है बल्कि यह साहस, बुद्धिमत्ता व शक्ति को भी प्रदर्शित करता है। अंतरराष्ट्रीय निवेशक व अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था को हाथी की संज्ञा प्रायः इस आधार पर देते हैं कि यह बहुत विशाल तो है, किंतु इसकी चाल बड़ी सुस्त है । इस धारणा को तोड़ने के लिए ही मोदी सरकार ने काफी विचार-विमर्श के बाद सिंह को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के प्रतीक चिह्न के तौर पर चुना । इसे चीनी चुनौती के प्रतीक ड्रेगन के प्रत्युत्तर के रूप में भी देखा जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि जिस दिन भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत की, उसी दिन चीन ने भी ‘मेड इन चाइना’ नाम का अभियान प्रारंभ किया था । इसे भारत के नागरिकों के लिए ‘फर्स्ट डेवलप इंडिया’ के रूप में परिभाषित किया गया । इस अवसर पर सरकार की ओर से उद्यमियों को भरोसा दिलाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार बिजनेस के माहौल को आसान बनाकर देश को आगे ले जाना चाहती है । इस दृष्टि से सेल्फ सर्टिफिकेशन से सरकार ने बदलाव की शुरुआत की। इस अवसर पर भारत के पास उपलब्ध 3 – डी शक्ति अर्थात् डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी एवं डिमांड का उल्लेख भी किया गया। इसके साथ ही देश की ‘लुक ईस्ट’ नीति के साथ ‘लिंक वेस्ट’ (Link-West) को जोड़कर ग्लोबल विजन के साथ आगे बढ़ने के मंत्र को बढ़ावा दिया गया । ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से देश के उद्योग जगत् में एक नए उत्साह का संचार हुआ।

‘मेक-इन-इंडिया’ कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभ देश के बेरोजगारों युवाओं को मिला। देश की आर्थिक विकास दर सुधरी, उद्योगों ने लाभ कमाया, सेंसेक्स में उछाल आया, परंतु साथ ही रोजगार का हनन भी हुआ । क्योंकि उद्योग सूचना प्रौद्योगिकी तथा स्वचालित विधियों व तकनीकियों की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।

देश में किसी वस्तु का निर्माण दो तरह होता है— पूँजी सघन और श्रम सघन | चीनी मिल पूँजी सघन एवं खांडसारी का कारखाना श्रम सघन होता है। सरकार को चाहिए कि चीनी मिल पर एक्साइज ड्यूटी, सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स बढ़ाए और खांडसारी पर घटाए जिससे टैक्स की औसत दर पूर्ववत् बनी रहे । इसी प्रकार देश की विभिन्न पूँजी यानी उद्योगों की पूँजी को सघन एवं श्रम सघन उद्योगों में बाँटा जा सकता है। पूँजी सघन उद्योग स्टील, सीमेंट, पेट्रोलियम, कार तथा मोटर साइकिल इत्यादि हैं जबकि श्रम सघन उद्योग सॉफ्टवेयर, पोल्ट्री फार्म, कालीन, कंस्ट्रक्शन निर्माण इत्यादि हैं। सरकार को पूँजी सघन उद्योगों पर टैक्स बढ़ाने और श्रम सघन उद्योगों पर टैक्स घटाने पर विचार करना चाहिए। ऐसा करने से हमारी अर्थव्यवस्था का चरित्र श्रम सघन हो जाएगा । साथ-ही-साथ अधिक संख्या में रोजगार उत्पन्न करने वाली इकाइयों को श्रम कानूनों से मुक्त कर देना चाहिए; तब उद्योगों के लिए रोजगार सृजन करना लाभप्रद हो जाएगा और ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम सही अर्थों में सफल हो सकेगा।

उल्लेखनीय है कि विनिर्माण किसी भी अर्थव्यवस्था की बेहतरी का सर्वश्रेष्ठ विकल्प होता है। इसके विकास से औद्योगिक संवर्धन गतिशील होता है जिससे प्राथमिक वस्तुओं के बजाए निर्मित और प्रसंस्कृत वस्तुओं के निर्माण और निर्यात का मार्ग प्रशस्त होता है तथा बड़े हुए आयातों का भुगतान करने के लिए निर्यातों को अपेक्षित स्तर तक बढ़ाना संभव है। इससे अंतत: भुगतान शेष की प्रतिकूलता दूर करने में मदद मिलती है और आयात प्रतिस्थापन के साथ निर्यात प्रोत्साहन का भी मार्ग प्रशस्त होता है । इस अभियान की मंशा यह है कि दुनिया के बड़े उद्योग भारत में अपनी उत्पादन इकाइयाँ लगाएँ, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन को तेजी से बढ़ाए बिना लगातार ऊँची विकास दर हासिल नहीं की जा सकती । उद्योगों के भारी विकास से ही बड़ी तादाद में रोजगार पैदा किए जा सकते हैं तथा इससे देश में काफी राजस्व अर्जित होगा और इसी के द्वारा बहुसंख्यक आबादी गरीबी रेखा के ऊपर आ सकती है अथवा अपना जीवन स्तर बढ़ा सकती है। चीन ने निर्यात आधारित उद्योगों के जरिए पिछले दशकों में तेजी से तरक्की की है। हालाँकि वहाँ कारोबार करने में दूसरी समस्याएँ आ रही हैं, ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूसरे देशों में निवेश की संभावनाएँ खोज रही हैं, भारत इस मौके का फायदा उठा सकता है। जबकि विनिर्माणोन्मुख अर्थव्यवस्था पूँजीगत साधनों की माँग पैदा करती है, जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया त्वरित होती है । इस अभियान के माध्यम से नई तकनीकों का अधिग्रहण और अधोस्थापना से संबंध सुविधाओं को बढ़ाने के साथ त्रुटिहीन उत्पादन और पर्यावरण अनुकूल उद्योग के रूप में पूँजी के विकासीय प्रयोग पर बल दिया गया है, जो कि विकास की सामयिक आवश्यकता है। इस अभियान से भारत की बड़ी कंपनियों की दुनिया में पैठ और पहचान तो बनी ही है, वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में लघु उद्योगों को भी सहायता मिली है।

‘मेक इन इंडिया’ अभियान की सफलता के पीछे भारत सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों के आरंभिक सकारात्मक आर्थिक परिणाम हैं जिससे सरकारी दफ्तरों में पक्षपात के मुद्दे पर भारत की रैंकिंग में जबर्दस्त सुधार हुआ है। सरकारी धन के गलत प्रयोग और रिश्वत जैसे मानकों पर भी स्थिति बेहतर हुई है, जो इस अभियान की सफलता का संकेत दे रहे हैं। भारत की क्रयशक्ति लगातार बढ़ रही है, जिसके आधार पर अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

इस अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार ने बहुत तैयारी की है तथा इससे निवेशकों के लिए नियमों का बोझ कम करने की कोशिश की जा रही है ताकि अधिक से अधिक निवेश को आकर्षित किया जा सके।

विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ (Ease of Doing Business) रिपोर्ट- 2022 भी बताती है कि व्यवसाय के मामले में भारत 189 देशों में 63वें स्थान पर है यानी दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में व्यावसायिक माहौल बेहतर है। हालाँकि वैश्विक निवेशक नियमों की जटिलता और नौकरशाहों की लाल-फीताशाही की आलोचना होती रहती है । ‘मेक इन इंडिया’ अभियान निश्चित रूप से औद्योगिक क्षेत्र में आशा की नई किरण है।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ‘मेक इन इंडिया’ एक महत्वाकांक्षी पहल है जिसका उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना है। इस पहल का उद्देश्य विनिर्माण को बढ़ावा देना, रोजगार सृजित करना और भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करना है। इस पहल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। सरकार को ‘मेक इन इंडिया’ के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करने और निवेश एवं उद्यमिता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता है।

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